Wednesday, July 13, 2011

ऐ हवा...(1)


काश...
मैं भी होता तुझ सा
आवारा, ऐ हवा...

फिरता कहीं भी
मनमाना ऐ हवा

बेसुध, बेपरवाह
अल्हड़, दीवाना ऐ हवा

ठहरकर, आंसुओं को
न गिनता ऐ हवा

बांटकर सुकूं
इठलाता ऐ हवा

पंछियों से आगे
बढ़ता रहता ऐ हवा

काश, मैं तुझ सा
होता ऐ हवा

रवायतों के पन्नों को ले
उड़ जाता ऐ हवा

आंसुओं को पल में
सुखा पाता ऐ हवा

दीवाना होता, मैं भी
सरगोशियाँ करता ऐ हवा

बहारों को फूलों से
सजाता ऐ हवा

मोहब्बत के दामन को
उड़ाता रहता ऐ हवा

बच्चों के अरमानों सा
उड़ता ऐ हवा
काश...काश....काश
मैं तुझ सा होता ऐ हवा...

1 comment:

Panchi said...

too good ....................:)

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